क्या आमदनी से अधिक खर्च करना मूर्खता है? ~ Is it Foolish to Spend more than Income?

 

दोस्तों क्या आप जानते हो आमदनी से अधिक खर्च करना मूर्खता है?

आमदनी का सम्बन्ध हमारी प्रकृति, आदतों, फैशन, रहन सहन का ढंग, जलवायु, देशकाल, आवश्यकताओं, घर के सदस्यों की संख्या, रीति रस्म, आचार व्यवहार पर निर्भर है। इनमें से प्रत्येक का ध्यान हमें रखना पड़ता है।

उपभोक्ताओं की परिस्थितियों के अनुसार आमदनी की कमी या अधिकता बदलती रहती है। प्रायः देखा जाता है कि आदत पड़ जाने पर मनुष्य विलासिता पर व्यय करना आवश्यकताओं पर व्यय करने से अधिक उत्तम समझता है। जिस व्यक्ति को शराब, चाय, सिनेमा, वेश्यागमन, तम्बाकू, गाँजा, चरस का व्यसन लग जाता है, वे दूध, दही, मक्खन, हवादार मकान इत्यादि जीवन रक्षण और निपुणता - दायक पदार्थों में व्यय करना पसन्द नहीं करते।

मेरे भाई इसी प्रकार फैशन परस्त लोग घर की गरीबी न देखते हुए भी बाहरी टीपटाप, मिथ्या प्रदर्शन में फंसे रहते हैं। निर्धन लोग थोड़ी सी वाहवाही के लिए कर्ज लेकर विवाह, जनेऊ या दान इत्यादि में व्यय कर देते हैं। गरीब मजदूर भी पान, बीड़ी, सिनेमा, चाय, जुआ, सट्टा, शराब इत्यादि व्यसनों में व्यय करते हुए नहीं डरते। भिक्षुक तक चाय या बीड़ी पीना दूध रोटी से अधिक पसन्द करते हैं।

एक अमीर व्यक्ति के लिए आलीशान महल, बिजली के पंखे, लैम्प, मोटर, फाउन्टेन पेन, भड़कीले वस्त्र, सजावट की वस्तुएँ आराम की वस्तुएँ समझी जायेंगी, किन्तु एक गरीब किसान, या क्लर्क, मामूली दुकानदार नौकरी पेशा के लिए ये ही वस्तुएँ विलासिता की चीजें मानी जावेंगी।

मेरे भाई सदा अपनी आमदनी पर दृष्टि रखिये। आमदनी से अधिक व्यय करना नितान्त मूर्खता और दिवालियापन की निशानी है। जैसे-2 आमदनी कम होती जाये, वैसे-2 व्यय भी उसी अनुपात में कम करते जाइये। व्यय में से विलासिता और आराम की वस्तुओं को क्रमशः हटाते चलिये, व्यसन छोड़ दीजिये, सस्ता खाइये, एक समय खाइये, सस्ता पहनिये। मामूली मकान में रह जाइये, नौकरों को छुड़ाकर स्वयं काम किया कीजिये, धोबी का काम खुद कर लीजिये, चाहे बर्तन तक खुद साफ कर लीजिये किन्तु आमदनी के बाहर पाँव न रखिये। और मूर्खता के कलंक से बचिए |

 

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