क्या गरीबी हमारे असंतोष का कारण है? ~ Is Poverty the reason for our Dissatisfaction? ~ Motivation Hindi

दोस्तों गरीबी दुनिया में वस्तुतः इतनी अधिक नहीं है जितनी कि दिखाई पड़ती है। मनुष्य प्रचुर धन का स्वामी बनने के, अंततः ऐश्वर्य का सुखोपभोग करने के सपने देखा करता है, अपने से बड़े लोगों के साथ अपनी तुलना करके खिन्न होता है कि मैं भी इतना ही बड़ा क्यों न हो जाऊँ?

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मेरे भाई बस, ईर्ष्या और तृष्णा की आग प्रचंड वेग से उसके मन में जलने लगती है। कपड़ों में लगी आग से जलता हुआ मनुष्य कोई और उपाय न देखकर कुएँ में कूद पड़ने को भी इस आशा से तैयार हो जाता है कि मेरी जलन मिट जाएगी। इसी प्रकार जिसका मन महत्त्वाकांक्षाओं की तृष्णा में बुरी तरह जल रहा है, उसके लिए कुकर्म के कुएँ में कूद पड़ना भी कुछ आश्चर्य की बात नहीं है। समझ में आ रहा है न मेरे भाई |

मनुष्य अनेकों वस्तु चाहता है। अपने से बड़े और सुखी-संपन्न स्थिति के लोगों को देखकर यह इच्छा उत्पन्न होती है कि हमारे पास भी इतना ही वैभव और ऐश्वर्य क्यों न हो? इस प्रकार की तृष्णा ही असंतोष का कारण देखी जाती है।

हमें चाहिए कि अपने से नीचे गिरे हुए, दुखी और गरीबों से अपनी तुलना करते हुए संतोष की साँस लें कि परमात्मा ने हमें अनेकों से कमजोर भले ही बनाया हो, पर असंख्यों से ऊँचा भी रखा है।

मेरे भाई, असंतोष के यदि दस कारण जीवन में होते हैं तो सौ कारण संतोष के भी होते हैं। जो कुछ संतोष के कारण हमें प्राप्त हैं, उन पर विचार करें और उनसे अपना चित्त प्रसन्न रखने का प्रयत्न करें तो दृष्टिकोण के बदलते ही मन की खिन्नता का प्रत्यावर्त्तन प्रसन्नता और उल्लास में हो जाता है।

हर इच्छा किसी की भी पूरी नहीं हुई। सबको, जो कुछ है, उसी पर सब्र करके अधिक प्राप्ति के लिए प्रयत्न करते रहना पड़ता है। यही क्रम शांतिदायक है, इसी को अपनाकर हम संतोष के अधिकारी बन सकते हैं।

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