क्या तुम जीवन भर धक्के खाते रहेंगे? ~ Motivation Hindi

 


Summary:
मनुष्य स्वभाव से आलसी है वह किसी के नियंत्रण में नहीं रहना चाहता। उसे स्वतन्त्रता चाहिये और स्वतन्त्रता के साथ ढीलापन, विलासिता, और काम को टालना।
वह आवेशों में रहता है। जब मन आया काम किया, जब तक मन कहता है काम करता है, जब मन सब कुछ छोड़ बैठा।
 

वह बड़े लम्बे सफर के लिए निकलता है, लेकिन जहां एक बार बैठ जाता है, वहां से आलस्य वश आगे नहीं चलना चाहता। यदि कोई उसे आगे चलाता रहता तो वह अवश्य यात्रा पूर्ण कर सकता था।
यह आलस्य, यह ढीलापन, कार्य को मध्य में छोड़ भागना, बात को टालने की आदत, काम न करने की आजादी, अनियंत्रण, मजेदारी मस्ती, व्यर्थ के कार्यों में समय नष्ट करना उसकी बड़ी कमजोरियां हैं।
 

इन सब प्रकार की कमजोरियों को दूर करने के लिए जीवन में एक गुण चाहिये, जो अंग्रेजी के ‘रेजीमेन्टेशन’ शब्द से व्यक्त होता है। रेजीमेन्ट फौज का एक टुकड़ा है। रेजीमेन्टेशन से अभिप्राय उस कठोर अनुशासन, नियंत्रण, नियमितता से है, जो हमें फौज में रह कर मजबूरन करना होता है। हम उस अनुशासन से बच नहीं सकते। न करने पर तुरन्त सजा मिलती है।
 

अनुशासन का महत्व—
फौज में सबसे अधिक महत्व अनुशासन का है। आप को अपने कैप्टेन की आज्ञा का पालन हर हालत में करना होता है। शुद्ध रीति से खड़े होना, कवायद, चलना, भागना मजबूरन करना होता है। जरा से अनुशासन भंग होने से, तनिक सी लापरवाही या अनियमितता से आपको घण्टे भर कन्धे पर दो दो बन्दूकें रखकर इधर से उधर टहलना होता है। आप मजबूर हैं, न अनुशासन भंग कर सकते हैं, न उस सजा या नियमितता से भाग सकते हैं। फलतः इच्छा से या अनिच्छा से आपको वह तमाम बातें करनी होती हैं, जो मिलिटरी का नियम है। आप को एक समय पर उठना, स्नान करना, कसरत भोजन, विश्राम, भागना दौड़ना, सोना जागना पड़ता है। यह अनुशासन आप पर लाद दिया जाता है। कल्पना कीजिये, जो व्यक्ति दस या बीस रेजिमेन्टेशन में रहा हो, उसकी आदतें कैसी बन जायंगी।
मेरे घर के सामने एक रिटायर्ड कर्नल की कोठी है। उनकी आयु साठ के लगभग है। जब मैं प्रातः काल अनिच्छा से अपने शरीर को कसरत देने की इच्छा से भागता दौड़ता हूं, शरीर के प्रत्येक अवयव को ठीक सशक्त अवस्था में रखने के लिए मजबूरी में उससे शारीरिक कार्य लेता हूं तो मैं देखता हूं कि ये कर्नल महोदय उसी पुरानी मिलिटरी चाल से कमर सीधा किये छाती बाहर निकाले टहलने जाते हैं। उनका यह टहलना और मिलिटरी जैसे नपे-तुले कदम आगे पीछे जाने वाले हाथ और स्वास्थ्य खून से भरा हुआ रोबीला चेहरा एक आदत बन गया है। वे उससे मुक्त नहीं हो सकते। पूछने पर मालूम हुआ है कि उन्हें इस कार्य में कोई श्रम या कष्ट की भावना नहीं होती। उन्हें यह मालूम भी नहीं होता कि वे कोई विशेष श्रमसाध्य कार्य भी कर रहे हैं। कार्य मशीन की तरह स्वयं अपने आप होता चलता है।
 

किसी कार्य को करने की प्रेरणा दो प्रकार की हो सकती है—
 

(1) अन्तर से हृदय या आत्मा को दिव्य प्रेरणा। इसका उदय सात्विक मन में तर्क तथा कर्तव्य भावना से होता है। मनुष्य किसी कार्य के औचित्य के विषय में सोचता है, तथा उसे पूर्ण करने में लग जाता है |
 

(2) बाह्य परिस्थितियों या किसी बड़े व्यक्ति द्वारा शासन या सजा का भय। प्रायः अशिक्षित, अविकसित व्यक्तियों में यह दूसरी प्रकार की प्रेरणा ही काम करती है। वे दण्ड के भय से किसी कार्य के करने को मजबूर किये जाते हैं। छोटे बच्चे जो अपने भले बुरे को नहीं समझते दण्ड के भय से उन्नति करते हैं।
 

यदि बालक बड़ा होने पर तर्क और बुद्धि से किसी कार्य को पूर्ण करने की प्रेरणा प्राप्त कर ले तो उसकी उन्नति निरन्तर चलती है, अन्यथा स्वतन्त्र और निर्द्वन्द होने पर वह आलस्य मजेदारी, बेकारी, सरलता का मार्ग अपनाती है।
अपने मन पर विवेक बुद्धि का इतना सख्त अनुशासन रखिये कि विवेक हीनता का कोई कार्य आप कर न सकें। आप का विवेक आपके अन्तर वाह्य की समस्त क्रियाओं पर तीखी दृष्टि रखे। कोई भी बात उसके विरुद्ध न हो। 

जितना कठोर अनुशासन होगा, उतना ही श्रेष्ठ और विकसित जीवनपुष्प रहेगा।
मित्रो क्या तुम अभी भी जीवन भर धक्के खाते रहेंगे? या अपनी जीवन शैली का सुधार और उसे नियंत्रित करोगे | हमें कम्नेट्स करके जरूर बताएं |

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