क्या कर्त्तव्य का पालन करने वाले को सच्चा मनुष्य कहा जा सकता है? ~ Observance of Duty

 


नमस्कार दोस्तों क्या कर्त्तव्य का पालन करने वाले मनुष्य को ही सच्चा मनुष्य कहा जा सकता है? सबसे पहले आपको यह जानना चाहिए कि कर्तव्य क्या है ?

कर्त्तव्य’ और धर्म एक दुसरे के पूरक ही है वास्तव मे

| साथियो ‘कर्त्तव्य’ वह कार्य है जिसे करना हम लोगों का परम धर्म है और जिसके न करने से लोग और लोगों की दृष्टि से गिर जाते और अपने कुचरित्र से नीच बन जाते हैं। जैसे पिता का धर्म है परिवार की सुरक्षा, बच्चो को अच्छी शिक्षा दिलाना, पत्नी का धर्म है पति की सेवा और उसके कार्य में सहायता करना, शिक्षक का धर्म है बच्चो की सही सीखा देना, पुलिस का धर्म है लॉ एंड आर्डर मेन्टेन करना, धर्मगुरुओं का धर्म है धर्म की रक्षा करना | राजा का धर्म है प्रजा का पालन करना | क्या आज कल यह सब सही से हो रहा है नहीं |

प्रारम्भिक अवस्था में कर्त्तव्य का पालन बिना दबाव के नहीं हो सकता, क्योंकि पहले-पहले आपका मन उसे करना नहीं चाहता है। इसका आरम्भ पहले घर से ही होता है, क्योंकि यहाँ लड़कों का कर्त्तव्य माता-पिता की ओर और माता-पिता का कर्त्तव्य लड़कों की ओर दिखाई पड़ता है। घर के बाहर हम मित्रों, पड़ौसियों और राजा-प्रजाओं के परस्पर कर्त्तव्यों को देखते हैं। इसलिए संसार में मनुष्यों का जीवन कर्त्तव्यों से भरा पड़ा है, जिधर देखो उधर कर्त्तव्य ही कर्त्तव्य देख पड़ते हैं। बस इसी कर्त्तव्य का पूरा-पूरा पालन करना हम लोगों का धर्म है, और इसी से हम लोगों के चरित्र की शोभा बढ़ती है।

हम सब लोगों के मन में एक ऐसी शक्ति है जो हम सभी को बुरे कामों के करने से रोकती है और अच्छे कामों की ओर हमें प्रेरित करती है। बहुत बार यह देखा गया है कि जब कोई मनुष्य खोटा काम करता है तब बिना किसी के कहे अपने आप ही पश्चाता और अपने मन में दुखी होने लगता है। दूसरी ओर एक मनुष्य जो बुरा कार्य नहीं करता, सदा प्रसन्न रहता और उसके मन में कभी-कभी किसी प्रकार का डर तथा पछतावा नहीं होता। परन्तु जब हम कोई बुरा कार्य कर बैठते हैं तब हमारी आत्मा हमें कोसने लगती है। इसलिए हमारा धर्म है कि हमारी आत्मा हमें जो कहे, उसके अनुसार हम करें।

मेरे भाई दृढ़ विश्वास रखो कि जब तुम्हारा मन किसी काम के करने से हिचकिचाये और दूर भागे तब कभी तुम उस काम को न करो। तुम्हें धर्म पालन करने में बहुधा कष्ट उठाना पड़ेगा | परन्तु इससे तुम अपना साहस न छोड़ो। क्या हुआ जो तुम्हारे पड़ौसी ठग-विद्या और असत्यता में धनाढ्य हो गये और तुम कंगाल ही रह गये। क्या हुआ जो दूसरे लोगों ने झूठी चाटुकारी करके बड़ी-बड़ी नौकरियाँ पा लीं और तुम्हें कुछ न मिला और क्या हुआ जो दूसरे नीच कर्म करके सुख भोगते हैं और तुम सदा कष्ट में रहते हो। मेरे भाई तुम अपने कर्त्तव्य-धर्म को कभी न छोड़ो | और विश्वास रखो ईश्वर की नजर में तुम महान हो और तुम देखोगे की इसमें तुम्हे सन्तोष और आदर मिलेगा।

प्रलोभनों को देखकर मत फिसलो। पाप का आकर्षण आरम्भ में बड़ा लुभावना प्रतीत होता है पर वह अन्त में बहुत दुखदायी सिद्ध होता है | जो इस चंगुल में फँस गया उसे तरह-तरह की शारीरिक और मानसिक यातनाएं सहनी पड़ती हैं।

इसलिए साथियों, सावधान रहो। सतर्क रहो। प्रलोभनों में न फँसो। चाहे कितनी ही कठिनाई का सामना करना पड़े पर अपने कर्त्तव्य पर दृढ़ रहो, अपने धर्म पर दृढ़ रहो।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है अपने धर्म का पालन करने में यदि मृत्यु भी क्यों न आ जाए तब भी अपने धर्म को मत छोड़ो | जो मनुष्य अपने धर्म का पालन करते हुए मरता है वह मोक्ष को प्राप्त करता है | इसलिए मेरे भाई कहा जा सकता है कि कर्त्तव्य पर दृढ़ रहने वाले मनुष्य ही सच्चे मनुष्य कहलाने के अधिकारी हैं। अपने कर्त्तव्य का पालन अपने जीवन में करते रहिये |

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