स्वामी विवेकानन्द से एक मूढ़मति ने पूछा- मुझे मुक्ति का मार्ग बताइए। स्वामी जी ने उसकी सर्वतोमुखी मूढ़ता को देख कर कहा तुम चोरी, व्यभिचार, छल, असत्य भाषण, कलह आदि में अपनी प्रवृत्ति बढ़ाओं। इस पर वहाँ बैठे हुए लोगों को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने पूछा स्वामी जी आप यह क्या अनीति का उपदेश करते हैं?
उन्होंने विस्तार पूर्वक समझाया कि तम में पड़े हुए लोगों के लिए पहले रज में जागृत होना पड़ता है तब वे सत में पहुँच सकते हैं। भोग और ऐश्वर्य को अर्निद्य मार्ग से प्राप्त करना निर्दोष और निद्य मार्ग से प्राप्त करना, सदोष रजोगुणी अवस्था है। दरिद्र को पहले सुसम्पन्न बनना होता है तब यह महात्मा बन सकता है। दरिद्र और नीच मनोवृत्ति का मनुष्य उदारता और महानता की सतोगुणी भावनाओं को धारण करने में समर्थ नहीं होता।
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