दोस्तों उन्नति की आकांक्षा एक बहुत ही उचित, स्वाभाविक एवं अध्यात्मिक मनोवृत्ति है। तुच्छता से आगे बढ़कर महत्ता को प्राप्त करना प्रत्येक मानव प्राणी का स्वाभाविक कर्त्तव्य है। जीवन की पूर्णता का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इस प्रकार की अभिलाषा का होना उचित भी है और आवश्यक एवं प्रशंसनीय भी। पर यह आकांक्षा तभी सफल हो सकती है, जब इंसान के अंदर धैर्य, साहस, विवेक और पुरुषार्थ का समुचित सम्मिश्रण उसके साथ हो। प्रसन्न मन और स्थिर चित्त रहना, इस मार्ग पर चलने वाले पथिक के लिए नितांत आवश्यक है।
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वैज्ञानिक शोध करने वाले शोधकर्त्ता जीवन भर किसी शोध में लगे रहते हैं और एक प्रकार से सफलता नहीं मिलती तो दूसरा-तीसरा मार्ग सोचते हैं, पर लगे उसी कार्य में रहते हैं। धैर्य में रत्ती भर भी कमी नहीं आने देते, असंतोष की एक रेखा भी उनके चेहरे पर नहीं होती। काम को काम समझकर करते रहने को ही वे अपने संतोष का आधार बनाए रहते हैं और वर्षों बीत जाने पर भी यदि सफलता न मिले तो खिन्नता की एक शिकन माथे पर नहीं पड़ने देते।
मेरे भाई स्थिति जिस किसी के भी मनःक्षेत्र की होगी, केवल वही इस संसार में कोई महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकेगा, केवल वही कोई बड़ी सफलता प्राप्त कर सकेगा।
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