Summary:
जीवन के शूलमय क्षणों, शुष्क संघर्षमय वातावरण, विदूषी स्वभाव के व्यक्ति के दुर्वह व्यवहार को सहन करने की शक्ति जाग्रत कीजिये। आपकी अनेक समस्याएं अति-भावुकता के कारण पर्वत सदृश्य प्रतीत होती हैं, जब कि राई सदृश्य उनका अस्तित्व है। छोटे-मोटे कष्टों को तो यों ही हंस हंसाकर टाल दिया कीजिए। एक-एक कष्ट को सहन करने की आदत डालिये।
जब कभी भावनाओं का तूफान आपके मन में आये, तो विशेष रूप से सावधान हो जाइये। कहीं आप आवेश (तैश) में कुछ ऐसा न कर बैठें कि बाद में पछताना पड़े। आवेश को यथा सम्भव रोके रहिये। जब तक शान्त न हो लें, तब तक कोई भी महत्वपूर्ण कार्य हाथ में न लीजिए।
जीवन शुष्क संघर्षों से युक्त है। यहां प्रत्येक व्यक्ति को सांसारिक चट्टानों से जूझना होता है। आपको कदापि इनसे डर कर भयभीत नहीं होना चाहिए। आपके अन्दर पौरुष नामक एक महा प्रतापी ईश्वरीय गुण है। उसे बाहर निकालिये। दूसरे के दुःख, शोक, हास्य को आप अनुभव कीजिए, पर उसमें बह न जाइये।
अति-भावुकता का एक कारण शारीरिक कमजोरी है। शरीर को जितना स्वस्थ बनाया जाय, उतना अच्छा है। स्वस्थ शरीर आपको जीवन की कठोर वास्तविकता से संघर्ष करने में सहायता प्रदान करेगा। आन्तरिक संस्थान में चंचलता, काम शक्ति का आवेग, क्रोध का आवेश, आत्मग्लानि का असन्तोष, ईर्ष्या की अन्तराग्नि, घृणा की वितृष्णा, दमन का उद्वेग भूल कर भी न पलने दीजिए। अप्राकृतिक उपायों द्वारा मानसिक दमन से यथा सम्भव बचे रहिए। हम जीवन की कठोरता से जितना ही अधिक परिचित हों और वास्तविकता के साथ जितना ही अपनी मनो भावनाओं का सामंजस्य स्थापित कर सकें, उतना ही हमारे लिए हितकर होगा।
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