बिना पुरुष के स्त्री का जीवन कैसा होता है ~ राम सीता संवाद ~ woman's life like without a man

 


Summary:

जब भगवान श्रीराम वन में जाने से मन करते हुए से कह रहे थे कि रास्ते में कुश, काँटे और बहुत से कंकड़ हैं। तुम्हें उन पर बिना जूते के पैदल ही चलना होगा। जंगल में भयानक जानवर होंगे | जमीन पर सोना, पेड़ों की छाल के वस्त्र पहनना और कंद, मूल, फल का भोजन करना होगा। वन में मनुष्यों को खाने वाले राक्षस से सामना करना पड़ेगा । वन में भीषण सर्प, भयानक पक्षी और स्त्री-पुरुषों को चुराने वाले राक्षसों के झुंड के झुंड रहते हैं। वन की भयंकरता याद आने मात्र से धीर पुरुष भी डर जाते हैं। हृदय में ऐसा विचारकर तुम घर ही पर रहो। वन में बड़ा कष्ट है | जानकी माता यह सोचकर व्याकुल हो उठीं कि मेरे पवित्र और प्रेमी स्वामी मुझे छोड़ जाना चाहते हैं। तब सीता जी ने कहा पति के वियोग के समान जगत में कोई दुःख नहीं है | हे रघुकुल रूपी कुमुद के खिलाने वाले चन्द्रमा! आपके बिना स्वर्ग भी मेरे लिए नरक के समान है | हे नाथ! जहाँ तक स्नेह और नाते हैं, पति के बिना स्त्री को सूर्य से भी बढ़कर तपाने वाले हैं। शरीर, धन, घर, पृथ्वी, नगर और राज्य, पति के बिना स्त्री के लिए यह सब शोक का समाज है | सीता माता ने आगे कहा भोग रोग के समान हैं, गहने भार रूप हैं और संसार नरक की पीड़ा के समान है। हे प्राणनाथ! आपके बिना जगत में मुझे कहीं कुछ भी सुखदायी नहीं है | जैसे बिना जीव के देह और बिना जल के नदी, वैसे ही हे नाथ! बिना पुरुष के स्त्री है। हे नाथ! आपके साथ रहकर आपका शरद्-(पूर्णिमा) के निर्मल चन्द्रमा के समान मुख देखने से मुझे समस्त सुख प्राप्त होंगे | हे नाथ! आपके साथ पक्षी और पशु ही मेरे कुटुम्बी होंगे, वन ही नगर और वृक्षों की छाल ही निर्मल वस्त्र होंगे और पत्तों की बनी झोपड़ी ही स्वर्ग के समान सुखों की मूल होगी | दार हृदय के वनदेवी और वनदेवता ही सास-ससुर के समान मेरी सार-संभार करेंगे और कुशा और पत्तों की सुंदर बिछौना ही प्रभु के साथ कामदेव की मनोहर तोशक के समान होगी | कन्द, मूल और फल ही अमृत के समान आहार होंगे और वन के पहाड़ ही अयोध्या के सैकड़ों राजमहलों के समान होंगे। क्षण-क्षण में प्रभु के चरण कमलों को देख-देखकर मैं ऐसी आनंदित रहूँगी जैसे दिन में चकवी रहती है | हे नाथ! आपने वन के बहुत से दुःख और बहुत से भय, विषाद और सन्ताप कहे, परन्तु हे कृपानिधान! वे सब मिलकर भी प्रभु के वियोग से होने वाले दुःख के लवलेश के समान भी नहीं हो सकते | ऐसा जी में जानकर, हे सुजान शिरोमणि! आप मुझे साथ ले लीजिए, यहाँ न छोड़िए। हे स्वामी! मैं अधिक क्या विनती करूँ? आप करुणामय हैं और सबके हृदय के अंदर की जानने वाले हैं |

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