स्मृति का रसायनशास्त्र ~ Chemistry of Memory ~ Motivation in Hindi

 स्मृति का रसायनशास्त्र ~ Chemistry Of Memory


मुझे कुछ याद नहीं रहता है | मेरी बुद्धि खर्च हो गयी है | मैं काम को करना भूल जाता हूँ | मैं क्या करूँ? ऐसा तुम अक्सर सुनते होंगे | यह सब स्मरण शक्ति की कमी के कारण होता है| स्मरण शक्ति की कमी की शिकायत वृद्ध ही नहीं, युवा व्यक्ति भी करते पाए जाते हैं।

स्मरण शक्ति की कमी से परीक्षा में उत्तीर्ण होने में परेशानी होती है |

स्मरण शक्ति की कमी से बिज़नेस में प्रॉब्लम आती है |

स्मरण शक्ति की कमी से रोजमर्रा के काम में अड़चन पैदा होती है |

अक्सर तुम इसे कोई रोग मान लेते हो |

और उसके लिए तरह-तरह की औषधियां खाते हो |

इसे दूर करने के लिए तुम  तरह-तरह के उपचार करते हों |

और पौष्टिक चीजों सेवन करने का सिलसिला चलाते हो।

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पर क्या आपने कभी यह सोचा और जानने की कोशिश की कि आखिर स्मरण शक्ति की कमी का कारण क्या है? तुम्हें किसी भी उपचार करने से पूर्व विस्मृति का कारण जानने की आवश्यकता है| साथ ही यह समझना भी उपयोगी है कि मस्तिष्क में स्मृति को संग्रह करने वाली, सुरक्षित रखने वाली संरचना कैसी है? मोटर की मशीन और उसके चलाने की विधि ठीक तरह समझ ली जाए, तो उसके संचालन में जो व्यवधान आते हैं, उनमें से अधिकांश का निवारण सहज ही हो जाता है।

स्मरण शक्ति प्रायः अपने स्थान पर यथावत रहती है। बचपन के प्रारंभिक और वृद्धावस्था के अंतिम दिनों को छोड़कर शेष जीवन में स्मृति का स्तर प्रायः समान ही रहता है। स्मरण रखने की प्रक्रिया में अंतर पड़ जाने से हमें उसकी मात्रा घट-बढ़ जाने का भ्रम होने लगता है। यदि स्मरण रखने की पद्धति का ज्ञान हो और स्मरण तंत्र की संरचना ध्यान में रखते हुए तदनुरूप घटनाओं को स्मरण रखने की विधि-व्यवस्था बना ली जाए, तो फिर स्मृति संबंधी उतनी शिकायत न रहे जैसी आमतौर से रहती हैं। यों हर मनुष्य में दूसरों की अपेक्षा कुछ-न-कुछ तो न्यूनता या अधिकता हर बात में रहती ही है।

अक्सर यह समझा जाता है कि बचपन में मेरी स्मरण शक्ति तीव्र होती है और पीछे आयु बढ़ने के साथ-साथ मंद होती जा रही हैं, पर वस्तुतः बात ऐसी है नहीं। छोटी आयु में मस्तिष्क के ऊपर बोझ कम रहता है और जो सोचना, याद रखना हैं, वह आसानी से निपट जाता है, किंतु बड़े होने के साथ-साथ कार्यक्षेत्र बढ़ता जाता है, साथ ही स्मरण रखने, निष्कर्ष निकालने, निर्णय करने का भार भी।

ऐसी दशा में बहुत काम करते रहने पर भी कुछ में अधूरापन रह जाना अप्रत्याशित नहीं। जो कुछ सही रीति से पूरा हो गया, उसकी ओर तो ध्यान दिया नहीं गया, पर जो कमी रह गई, उसी को मस्तिष्क की कमजोरी या स्मरण शक्ति की कमी मान लिया गया। ऐसे ही प्रसंगों को लेकर दिमागी शक्ति घट जाने की बात सोच ली जाती है और चिंता होने लगती हैं, जबकि वस्तुतः वैसा कुछ होता नहीं।

स्मरण शक्ति की कमी का बहुत बड़ा कारण हैं, उपेक्षा करना। स्मरण शक्ति की कमी का बहुत बड़ा कारण हैं, लापरवाह होना।

दोस्तों जिस वस्तु, बात या संदर्भ में तुम्हारा मन नहीं होती हैं, वहाँ तुम कम ध्यान देते हो जिसकी वजह से स्मृति की परतों पर अंकन बहुत ही हलका-धुँधला हो पाता है। उसके मिटने में देर नहीं लगती।

इसके विपरीत जिन विषय में तुम्हारी दिलचस्पी होती हैं, उन्हें ध्यानपूर्वक सुना, देखा और समझा जाता है, इस कारण से उनके चित्र हमारे मस्तिक्ष में अधिक स्पष्ट बनते हैं और स्मृतिपटल पर उसका अंकन इतना गहरा हो जाता है कि आवश्यकतानुसार उसे फिर देखा जा सकें।

विद्यार्थियों को पाठ याद न होने की अक्सर शिकायत रहती हैं, पर वे देखी हुई फिल्म का कहानी भली प्रकार सुना देते हैं और साथ ही उसके गीत भी याद रखते हैं। ऐसा क्यों होता है भाइयों!

दादी अपनी पोती का नाम बार-बार भूल जाती हैं, पर अपने पति या ससुर की श्राद्ध तिथि नहीं भूलती। ऐसा क्यों होता है भाइयों! एक लड़का पाने क्लास की विषय की किताबों के नाम और उनके लेखक जो याद नहीं कर पाता, परन्तु क्लास की साड़ी लड़कियों के नाम उसे याद हो जाते हैं | ऐसा क्यों होता है भाइयों!

इंसान सामान्य प्रसंगों में तारीखें याद नहीं रहतीं, पर वेतन पाने की तारीखें भूलने में कदाचित् ही किसी से कभी भूल होती होगी।  ऐसा क्यों होता है भाइयों! भुलक्कड़पन वस्तुतः कोई रोग नहीं, वरन् आदत हैं, जो दिलचस्पी की कमी वाले क्षेत्रों को ही प्रभावित करती हैं।

क्या आप जानते हों मस्तिष्क में करोड़ ग्रंथों के समा सकने जितना स्मृति क्षेत्र होता हैं| मस्तिष्क विज्ञानी स्मरण शक्ति का आधार उस विद्युत् धारा को मानते हैं, जो संवादवाहिनी तंत्रिकाओं में गतिशील रहती हैं। न केवल स्मृतियों का अंकन और पुनर्जागरण, वरन् मस्तिष्कीय संरचना को अपना काम ठीक तरह करने योग्य बनाए रहने में भी इसी विद्युत् धारा की प्रधान भूमिका रहती है।

दोस्तों ईंधन न मिलने पर चूल्हा ठंडा पड़ जाता है। मस्तिष्कीय कोशिकाओं को भी अपना काम सही रीति से करते रहने के लिए ऑक्सीजन का ईंधन चाहिए। बचपन में नई मशीन इस ईंधन को पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध और वितरित करती है। तब मस्तिष्क को भी यह खुराक पर्याप्त मात्रा में मिलती है और बच्चों की स्मरण शक्ति तीव्र रहती है। वे अपने पाठ आसानी से याद कर लेते हैं। जैसे-जैसे आयु बढ़ती हैं, वैसे-वैसे कोमलता घटती है और कठोरता बढ़ती हैं, फलतः ऑक्सीजन का उत्पादन-वितरण घटता जाता है। अवयवों में जो कोमलता बचपन अथवा किशोरावस्था में होती हैं, वह आयु बढ़ने के साथ घटती जाती हैं। ऑक्सीजन प्रवाह के मस्तिष्कीय कोशिकाओं तक पूरी तरह पहुँचने में भी व्यवधान उत्पन्न होता है, इस कारण से उम्र के साथ-साथ स्मरण शक्ति घटती चली जाती है। बुद्धिमत्ता समस्त स्मृतियों के मंथन को निष्कर्ष हैं। उसकी मात्रा तो बढ़ती हैं, पर स्मरण शक्ति के संदर्भ में बच्चों की स्थिति की अपेक्षा बड़ी आयुष्य वाले कमजोर ही पड़ते हैं। वृद्धावस्था में रक्त-वाहिनियाँ कठोर पड़ जाती हैं और रक्त-संचार उतनी अच्छी तरह नहीं हो पाता, फलतः मस्तिष्कीय कोशाएं पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन न मिलने के कारण दुर्बल होती जाती हैं। अतः बूढ़े लोगों की स्मृति दिन-दिन क्षीण होती जाती है। प्रायः वे अपने दैनिक उपयोग की वस्तुएँ तक जहाँ-तहाँ भूलने लगते हैं। परिचितों के नाम तक याद नहीं रहते।

आश्चर्य की बात यह है कि इतने पर भी देखा गया हैं कि बूढ़ों को भी अपने बचपन या युवावस्था की वे स्मृतियाँ बिल्कुल तरोताजा रहती हैं, जिन्हें वे महत्वपूर्ण समझते रहते हैं। देखा गया है कि वे अपनी इन स्मृतियों को आए दिन किसी-न-किसी को सुनाते रहते हैं। उन्हें वह सब कुछ इस प्रकार याद रहता है, मानो अभी कल-परसों की बात हो। ऐसा इसलिए भी होता है कि नई स्मृतियाँ समुचित ऑक्सीजन के अभाव में न तो मस्तिष्कीय कोषाओं पर पूरी तरह अंकित हो पाती हैं और न उनमें स्थायित्व होता है। ऐसी दशा में नई स्मृतियों की भीड़-भाड़ रहती नहीं और वे पुरानी अनुभूतियाँ निर्द्वंद्व होकर पूरे मस्तिष्क पर छाई रहती हैं।

मस्तिष्कीय गतिविधियों की प्रत्यक्ष जानकारी को देखते हुए उसे किसी अलौकिक कलाकार की अद्भुत संरचना कहा जा सकता है। वैसा कुछ बना सकने की बात सोचने का साहस ही कौन करेगा। अभी तो उसकी गतिविधियों को समझ सकने में ही बुद्धि हतप्रभ रह जाती है। अनुमान है कि विदित मस्तिष्कीय गतिविधियाँ बहुत स्वल्प हैं। समूची मानसिक क्षमताओं का प्रायः सात प्रतिशत ही क्रियाशील पाया जाता है। शेष तो अभी अविदित-अर्द्धमूर्च्छित स्थिति में ही सीलबंद स्टोर की तरह सुरक्षित पड़ी हैं। जो क्रियाशील हैं, वे उस प्रयोजन में काम आती हैं, जिसमें सामान्य जीवन की निर्वाह व्यवस्था का संचालन होता है। निर्वाह प्रयोजन तो समग्र जीव सत्ता का एक छोटा-सा अंश हैं। इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ सोचने और करने को बच जाता है। कभी किसी को उस अविज्ञात को जानने की, निष्क्रिय को क्रियाशील बनाने की और प्रसुप्त को जाग्रत् करने की आवश्यकता पड़ें, तो उसे इन सीलबंद स्टोरों को खोलना पड़ेगा, जो अपने भीतर बढ़ी-चढ़ी दिव्य क्षमताएँ छिपाए हुए हैं। उच्च अध्यात्म प्रयोजनों के लिए इन्हीं कोष्ठकों को खोलने और उनसे उपलब्ध क्षमता को असाधारण कार्यों में लगाने का प्रयत्न योगी तपस्वियों द्वारा किया जाता है।

स्मृति-विस्मृति की चर्चा करने की अपेक्षा जागृति और सुषुप्ति के आधार पर विवेचन करना अधिक युक्तियुक्त है। असावधानी, उपेक्षा और अनुत्साह की मनः स्थिति रहेगी, तो विस्मृति की शिकायत बनी ही रहेगी। जहाँ ऐसी कठिनाई अनुभव होती हो, वहाँ मानसिक पोषण देने वाले आहार का परामर्श देना कोई विसंगति नहीं हैं, पर अधिक उपयुक्त यह है कि चिंतन तंत्र पर छाई हुई शिथिलता को दूर किया जाए। इसके लिए ध्यान-धारणा के सभी उपचार न्यूनाधिक मात्रा में लाभदायक ही सिद्ध होते हैं। उपासना में ध्यान-धारणा पर जोर देने के अनेक शारीरिक-अध्यात्मिक लाभों के अतिरिक्त एक अतिरिक्त लाभ यह भी हैं कि उसे करते रहने पर विस्मृति की शिकायत पनपने नहीं पाती।

 

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